आदतें क्या हैं ? आदतों को कैसे बदलें ?
आदत अच्छी हो या बुरी हो, वोह एक आदत ही है. वोह एक बटन की तरह है जिसे तुम्हारे अंदर कोई दबाता है. और तुम वही करने लग जाते हो.
मतलब आप अपनी आदतों के मालिक नही हो. कोई आप से करवाए जा रहा है, और आप मशीन की तरह बस करते ही जा रहे हो.
सिगरेट पीने की तलब लगी और सिगरेट सुलगा लिया, जबकि मालूम है सिगरेट नुकसान ही करेगी.
टाइम पढने का है, कुछ प्रोडक्टिव काम करने का है और आप मोबाइल पर लगे हो, जबकि आपको मालूम है आप बहुत ही क़ीमती वक़्त ज़ाया कर रहे हो. कोई तुम्हारे अंदर ग़लत बटन दबाये जा रहा है और तुम कुछ नही कर पा रहे हो. इसे ख़ुद की ग़ुलामी कहते हैं, यह एक पिंजरा है, आदतों का पिंजरा है.
आदत अच्छी हो या बुरी, पिंजरा सोने का हो या लोहे का, क्या फ़र्क पड़ता है. पिंजरा एक पिंजरा है. और आप उसके मालिक नहीं हो. आदतों को अपने मुताबिक करना होगा. तुम्हें अपने-आपका मालिक बनना होगा.
आदतों अपने मुताबिक़ कैसे करना है? इसी सवाल का जवाब मैं आगे दूंगा.
इसलिए आपको और आपके दिमाक को इस ब्लॉग के साथ रुकना होगा, न की उस अपनी पुरानी आदत की तरह जिसमें आप सिर्फ़ एक ब्लॉग से दूसरी ब्लॉग में जम्प मारते रहते हो और अंत में सीख कुछ नही पाते. समझ कुछ नहीं पाते.
कभी आप गौर से अपने जीवन के पिछले पन्ने पलट कर देखें तो आप पायेगे कि
आपने जीवन में आज तक जो भी हासिल किया है वो सब आपको आपकी आदतों से ही मिला है.
इंसान की सफलता और असफलता सब उसकी आदतों का ही एक सिला है.
इसलिए अपनी आदतों को बहुत ही ध्यान से देखना; उसी में अपना भविष्य देख पाओगे. आज अभी आप जो भी कुछ कर रहे हो, कल आपके सामने वही-वही आएगा. इसलिए अभी और आज के वक़्त को भी ध्यान से इस्तिमाल करना. मगर यह होगा कैसे? आगे इसी को हमें जानना है.
अपने वर्तमान समय को टीक से इस्तिमाल कैसे करें?
नई आदतें बनाना और पुरानी आदतों को छोड़ना दोनों ही दुशवार और मुश्किल हैं.
अपनी ही एक आदत से आपको पछतावा होता है
और अपनी ही एक आदत से आपको बड़ी खुशियाँ मिलती हैं.
चुनाव आप को करना है कौन सी आदत को अपनाना चाहते हो.
आप अपने मालिक बन जाओ, अपने मन की ग़ुलामी छोड़ो.
आप सब जानते हो, अच्छी आदतें कौन सी है और बुरी आदतें कौन सी हैं. सिर्फ़ सही वक़्त पर सही काम करना है. जो आपके अपने-हित में हो, ना की दोस्तों ने कहा और महफ़िल जमा लिया. बुरी-आदतों वाले दोस्त के साथ रहने से अच्छा है कि अच्छी-आदतों वाले दुश्मन के साथ रह लो. वह अच्छी आदतों वाला दुश्मन तुम्हें ऊँचा उठा देगा. मगर बुरी आदतों वाला दोस्त तुम्हें कहीं का नही छोड़ेगा. तुम्हारी खुशियों का ज़नाज़ा निकाल देगा तुम्हारा वक़्त बर्बाद कर के.
येसे मित्रों से बचना है मगर कैसे? बुरे मित्रों के संगत से कैसे बचें?
इस सवाल का जवाब आप ख़ुद जानते हो. बस अपने आप में थोडा टटोल कर देखना है. तुम्हें एक पल की ख़ुशी चाहिए या पूरे जीवन को ख़ुशियों से भरना है.
किसी के साथ ना रहने के, किसी से दूर जाने के हज़ार बहाने होते हैं.
किसी से दूरियाँ बढ़ाना चाहो, तो दूरियाँ बढ़ने ही लगती हैं. और नए रास्ते नज़र आने लगते हैं. तुम जैसे लोगों के साथ उठते-बैठते हो, उन्हीं की तरह तुम भी होने लगते हो. तो अपने संगी-साथी पर ध्यान देना. अपनी सफलता के लिए किसके साथ बैठना है और किसके साथ नही बैठना; तुम खूब जानते हो. बस हिम्मत नहीं दिखा पाते न कहने की, दूर जाने की. इनती हिम्मत करनी ही होगी, अपना पहला क़दम उठाना ही होगा. हज़ारों मीलों का सफ़र पहले क़दम से ही शुरू होता है.
वक़्त बर्बाद करने से कैसे बचें?
वक़्त मुठ्ठी भर रेत है हाथ से फिसलता ही जाएगा. इसलिए वक़्त का एक-एक पल निचोड़ लो.
इस कीमती वक़्त को बेकार की आदतों में ज़ाया ना करो.
अपने कामों को लिख लिया करो, कौन सा काम ज़रूरी है और कौन सा काम ग़ैर ज़रूरी, उसके हिसाब से क़दम उठाओ. जान लो की तुम्हारा हर एक्शन तुम्हारा फ्यूचर बना रहा है. दुनिया में आजतक जितने भी लोगो ने जीवन में कुछ किया है, उन्होंने लिखा ज़रूर है, तो एक डायरी रखो, लिखा करो- जो जाना है, जो करना, कहाँ जाना है क्या करना है. आज के वक़्त पर तुम अपना कल लिख रहे हो.
जिस तरह इंसान एक मशीन को प्रोग्राम करता है, अगर वह ख़ुद की आदतें भी उसी तरह प्रोग्राम कर ले, तो उसके लिए कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं है. दिलो-दिमाक का प्रोग्राम ठीक करो आदतें अपने आप टीक हो जायेगी.
अल्लामा इक़बाल ने क्या ख़ूब कहा है कि
“ ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.”
अपनी आदतों को बुलंदतर करना होगा. इसी से आपको कामयाबी का ज़ायक़ा मिलेगा. एक बार इसका ज़ायका मिलने भर की देर है, फिर कामयाबी के ज़ायके की भी आदत पड़ जायेगी, फिर हर लक्ष्य एक नई उर्जा आप में भर देगा. आपको सफलता की लत लग जायेगी. ये लत हर बार और भी अच्छा करने को उत्साहित करेगी.
जैसे तुम बुरी आदतों के तुम आदी हो गए; वैसे ही अच्छी आदतें भी तुम्हारी अपनी हो सकती है.
जो आदतों की धूल बरसों से चित पर जमी है वो हट सकती है इसमें कोई दो राय नहीं है. थोड़ी बुरी-आदतों की धूल-धवांस हटाने भर की देर है एक नई उर्जा का संचार होगा और तुम ख़ुद से भी अचंभित होक रह जाओगे. तुम्हारे अंदर छुपी संभावनाए अपार हैं. सफलता पाना तुम्हारा अधिकार है और कोई तुम्हें रोक नहीं सकता है. बताओ मुझे अगर कोई तुम्हें रोक रहा है. या कोई अड़चन डाल रहा है. नीचे कमेंट करो.
हमारी सफलता में क्या क्या बाधाएं आ सकती हैं?
तुम अपने विचारों को देखना, तुम्हारा जैसा विचार होगा, वही-वही बातें तुम्हारी बातचीत में आती होगी,
तुम अपनी बातचीत पर गौर करना, उसी को तुम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में करते नज़र आओगे,
और जो तुम कर रहे हो, उसे जानोगे तो पाओगे की – ये ही तुम्हारी आदतें हैं.
और तुम्हारी आदतें ही तुम्हारा किरदार तुम्हारा चरित्र निर्माण करती हैं. तुम्हें सफल या असफल बनती हैं.
एक दिन तुम्हारा चरित्र ही तुम्हारी मंज़िल, तुम्हारी कामयाबी या नाकाबयाबी बन जाता है.
इसलिए अपनी आदतों को जानो, अपने एक्शन पर नज़र रखो. हम दूसरों पर नज़र रखते हैं बस ख़ुद को ही देखने से चूक जाते हैं. जिस दिन तुम्हारी नज़र ख़ुद को जानने और देखने लगेगी, उस दिन तुम अपनी आदतों के मालिक बन जाओगे. फिर जो चाहोगे वोह होगा, सफलता तुम्हारी अपनी ही होगी. जीत पक्की है. जीत तुम्हें मिली ही हुई है.